जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में समाजवादी पार्टी को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा. पार्टी अपने सहयोगियों के साथ केवल 6 सीट पर ही जीत हासिल कर पाई और अब अखिलेश यादव इस हार के कारणों की समीक्षा कर रहे हैं. 7 जुलाई तक सभी जिला अध्यक्षों, महानगर अध्यक्षों से रिपोर्ट तलब की गई है कि वह बताएं कि आखिर उनके यहां हार की वजह क्या रही, किसने पार्टी के साथ गद्दारी की. जाहिर है इस रिपोर्ट के बाद कुछ कड़े कदम अखिलेश यादव उठा सकते हैं. लेकिन सवाल उस टीम अखिलेश के युवा नेताओं पर भी उठ रहे हैं जिन्हें पार्टी ने तो बहुत कुछ दिया लेकिन वह अपने घर में ही पार्टी को जीत दिलाने में नाकाम साबित हुए हैं.
जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए हुए चुनाव में जहां पहली बार बीजेपी ने ऐतिहासिक जीत हासिल की, तो वहीं इस चुनाव की एक्सपर्ट माने जाने वाली समाजवादी पार्टी को केवल 5 सीटों पर ही जीत मिली और बागपत में आरएलडी की एक सीट को जोड़ दें तो कुल 6 सीटों से ही सपा को संतोष करना पड़ा. अब अखिलेश यादव ने पार्टी के सभी जिला अध्यक्ष और महानगर अध्यक्षों से 7 जुलाई तक हार के कारणों पर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है, जाहिर है रिपोर्ट इसलिए मांगी गई है कि पार्टी के भीतर रहकर ही पार्टी में भितरघात करने वालों की पहचान की जा सके और फिर उनके खिलाफ एक्शन भी लिया जा सके. माना जा रहा है कि इस रिपोर्ट के आने के बाद जिला स्तर पर पार्टी संगठन में कुछ बड़े बदलाव होंगे. वहीं पार्टी के जो अलग-अलग विंग है उसमें भी फेरबदल देखने को मिल सकते हैं. लेकिन सवाल अगर किसी पर सबसे ज्यादा उठ रहे हैं तो वह अखिलेश यादव की टीम अखिलेश है जिन्हें पार्टी ने पद प्रतिष्ठा तो दिलाई लेकिन वह इस चुनाव में अपने-अपने जिलों में ही पार्टी को जीत नहीं दिला पाए.
सपा को घर में भी हार का सामना करना पड़ा
समाजवादी पार्टी को न केवल बड़े महानगरों में ही बल्कि अपने घर में भी हार का सामना करना पड़ा है. फिरोजाबाद, मैनपुरी, संभल, कन्नौज में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. टीम अखिलेश के सदस्यों को इस चुनाव को जिताने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. पार्टी ने उन्हें पूरी तरह से फ्री हैंड भी दिया था और कैंडिडेट सिलेक्शन में भी उनकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण थी. लेकिन इन सबके बावजूद यह टीम अखिलेश की यंग ब्रिगेड पूरी तरह से नाकाम साबित हुई.
अगर कुछ नामों पर गौर करें तो उन्नाव में जीत की जिम्मेदारी एमएलसी सुनील साजन पर थी लेकिन वहां पहले कैंडिडेट को ही पार्टी से निकाल दिया गया और फिर चुनाव में वह रेस से बाहर हो गई थी. इसी तरह की स्थिति एमएलसी आनंद भदौरिया की भी रही जिन्हें सीतापुर में पार्टी उम्मीदवार को जिताने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी लेकिन वहां भी पार्टी को हार मिली. ठीक इसी तरह एमएलसी उदयवीर जो टूंडला से आते हैं को कन्नौज की जिम्मेदारी सौंपी गई थी लेकिन पार्टी वहां भी नहीं जीत पाई. एमएलसी संतोष यादव सनी को बस्ती मंडल की जिम्मेदारी सौंपी गई थी लेकिन पार्टी का वहां क्या हश्र हुआ सभी को पता है. विधान परिषद सदस्य संजय लाठर भी जीत दिलाने में नाकाम साबित हुए. एमएलसी राजपाल कश्यप को हरदोई की जिम्मेदारी मिली थी लेकिन वहां पर भी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. बाराबंकी से आने वाले राजू यादव भी अपने क्षेत्र में पार्टी के उम्मीदवार को नहीं जिता पाए. वहीं अखिलेश सरकार में मन्त्री रहे पवन पांडे पर अयोध्या में उम्मीदवार को जीत दिलाने की जिम्मेदारी थी लेकिन वहां भी पार्टी हार गई.
राजनीतिक विश्लेषक भी यह मानते हैं कि अब अखिलेश यादव को अपनी रणनीति में बदलाव करने की जरूरत है क्योंकि टीम अखिलेश के यह लोग जमीन पर कम और मीडिया में अपने बयानों के जरिए ज्यादा सुर्खियों में रहते हैं.
समाजवादी पार्टी की यूथ ब्रिगेड कहीं ना कहीं फेल नजर आई
हालांकि बीजेपी की इस आंधी में भी समाजवादी पार्टी 5 जिलों में जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीतने में कामयाब रही. लेकिन इसके पीछे पार्टी के पुराने और अनुभवी नेताओं की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जा रही है. जैसे बलिया में नारद राय, अम्बिका चौधरी की जोड़ी ने कमाल कर दिखाया. इसी तरह आजमगढ़ में पूर्व कैबिनेट मंत्री दुर्गा यादव ने जीत की रणनीति बनाई. एटा में हाल ही में बीजेपी छोड़कर आने वाले नेता और संत कबीर नगर में भी पार्टी के कद्दावर नेताओं ने ऐसी बिसात बिछाई कि वहां बीजेपी चारों खाने चित हो गई.
2022 विधानसभा चुनाव से पहले इस जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव को एक तरीके से सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा था और इस सेमीफाइनल में समाजवादी पार्टी की यूथ ब्रिगेड कहीं ना कहीं फेल नजर आई है. ऐसे में अब निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि आखिर 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी इस टीम अखिलेश पर ज्यादा भरोसा जताती है या फिर पुराने नेताओं को तवज्जो दी जाएगी.