लखनऊ। बहुचर्चित सुमित हत्या मामले में आखिरकार उत्तर प्रदेश मानव अधिकार आयोग ने संज्ञान लेकर कड़ा रूख़ अपनाते हुए पुलिसिया कार्रवाई को ही कटघरे में खड़ा कर दिया। आयोग ने अपने आदेश में साफ तौर पर कहा कि सुमित हत्या के मामले में जिन अभियुक्तों पर धारा 302 का मुकदमा दर्ज किया गया है वह पूरी तरह से अनुचित है। आयोग ने साफ कहा कि मामला तो धारा 304 का था क्योंकि अभियुक्तों ने ही मृतक को अस्पताल पहुंचाया था। इससे मृतक कोअभियुक्तो के द्वारा जान से मारने की कोई मंशा प्रतीत ही नहीं होती। आयोग ने अपने आदेश में आगे यह भी कहा है कि पुलिस द्वारा अभियुक्त के पिता ललित पांडे को बिना किसी ठोस साक्ष्य के धारा 120बी के अंतर्गत शामिल कर दिया है जो निराधार है। आयोग ने पुलिसिया कार्रवाई पर सवाल खड़े करते हुए साफ कहा है कि मामला 302 के अंतर्गत दर्ज होने के संबंध में स्पेशल रिर्पोट केस है और इसका पुलिस उपायुक्त के द्वारा पर्यवेक्षण किया गया होगा।
आयुष पाण्डेय आदेश सिंह
आयोग ने अपने आदेश में पुलिस की कार्यशैली पर खेद जताते हुए कहा कि इस प्रकरण में न तो सहायक पुलिस आयुक्त न ही पुलिस उपायुक्त द्वारा विवेचना की गहराई से समीक्षा की गई न ही विवेचक को ठोस निर्देश ही दिय गए।
उप्र मानव अधिकार आयोग ने लिखित आदेश पारित करते हुए लखनऊ पुलिस आयुक्त को आदेशित करते हुए लिखा है कि हत्या से संबंधित मामले की पुलिस उपायुक्त स्वयं समीक्षा करें और साक्ष्यों एवं तथ्यों के आधार पर निष्पक्ष कार्यवाही विवेचना के दौरान करायें। आयोग ने विवेचना की संपूर्ण रिपोर्ट इस माह के अंत तक आयोग के समक्ष प्रेषित करने को कहा है।
यह था पूरा मामला
विगत 15 जुलाई को सुमित मिश्रा नाम के एक युवक की थाना अलीगंज में हत्या हो गई थी जिसके इल्ज़ाम में सुमित मिश्रा की पत्नी के एक भाई तथा उसके दोस्त को गिरफ्तार कर पुलिस ने उन पर धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करके जेल भेज दिया था। हालांकि सीसीटीवी फुटेज और चश्मदीद के मुताबिक सुमित की मौत एसएचओ पन्नालाल यादव द्वारा बेरहमी से की गई पिटाई के कारण हुई थी जिसका खुद सुमित की पत्नी ने खुलासा किया था। उप्र मानव अधिकार आयोग द्वारा पूरे प्रकरण का संज्ञान लेने के बाद आयोग ने जिस प्रकार का आदेश लखनऊ पुलिस आयुक्त को दिया है इससे अभियुक्त के पिता ललित पांडे ने संतुष्टि जताते हुए कहा कि हमें पुलिस आयुक्त से पूरे न्याय की उम्मीद है।