EKPAHEL.IN| लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल की अध्यक्षता में राजभवन, लखनऊ में नीति आयोग, भारत सरकार द्वारा “ईज ऑफ डूइंग रिसर्च एंड डेवलपमेंट” विषय पर दो दिवसीय परामर्श बैठक का आयोजन किया गया। इस उच्चस्तरीय बैठक का उद्देश्य देश में अनुसंधान एवं विकास (R&D) पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूती प्रदान करना और इस क्षेत्र में मौजूद संरचनात्मक तथा प्रक्रियात्मक बाधाओं की पहचान कर उन्हें दूर करना रहा।
इस अवसर पर नीति आयोग के सदस्य डॉ. वी.के. सारस्वत ने राज्यपाल को आयोग की रिपोर्ट भी भेंट की। बैठक में देश के प्रमुख वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों, विश्वविद्यालयों के कुलपतियों और शोध संस्थानों के निदेशकों सहित नीति निर्माताओं ने शिरकत की और विभिन्न तकनीकी सत्रों में गहन विचार-विमर्श किया।
राज्यपाल ने अपने उद्बोधन में कहा कि हम नवाचार के युग में प्रवेश कर रहे हैं जहाँ नीति, वित्त और प्रशासनिक ढांचे में सुधार की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि शोधकर्ताओं पर अनावश्यक प्रशासनिक बोझ डालना उनके कार्य को बाधित करता है और इसे दूर करना अत्यावश्यक है। उन्होंने शोध कार्यों को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने, स्थानीय समस्याओं पर आधारित शोध को प्राथमिकता देने और शोध अनुदान के समयबद्ध भुगतान पर भी बल दिया।
राज्यपाल ने उत्तर प्रदेश की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि प्रदेश की युवा शक्ति, परंपरागत ज्ञान और औद्योगिक विकास की संभावनाएं आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में निर्णायक सिद्ध हो सकती हैं। उन्होंने उल्लेख किया कि यूजीसी द्वारा प्रदेश के 14 विश्वविद्यालयों को बहुविषयक शिक्षा और अनुसंधान के लिए चिन्हित किया गया है और क्यूएस एशिया रैंकिंग में प्रदेश के विश्वविद्यालयों का प्रदर्शन उल्लेखनीय रहा है।
राज्यपाल ने आंगनबाड़ियों को सशक्त बनाने के प्रयासों का उल्लेख करते हुए कहा कि राज्य विश्वविद्यालयों को प्रारंभिक शिक्षा की नींव मजबूत करने के लिए इन संस्थानों से जोड़ा जा रहा है। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि अनुसंधान को गर्भस्थ शिशु की शिक्षा से जोड़कर व्यापक दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।
बैठक में नीति आयोग के वरिष्ठ सलाहकार प्रो. विवेक कुमार सिंह ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में नीति आयोग द्वारा अनुसंधान एवं विकास को सशक्त बनाने हेतु राष्ट्रीय स्तर पर यह परामर्श श्रृंखला आयोजित की जा रही है। इसका उद्देश्य वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों और नीति निर्माताओं को एक मंच पर लाकर अनुसंधान से जुड़ी चुनौतियों का समाधान खोजना है।
तकनीकी सत्रों की प्रमुख झलकियाँ:
पहले सत्र में “राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर अनुसंधान एवं विकास हेतु वित्त पोषण एवं सहायता संरचना” विषय पर चर्चा की गई। यूजीसी के सचिव प्रो. मनीष आर. जोशी ने विश्वविद्यालयों के लिए फंडिंग अवसरों और प्रयासों को साझा किया। प्रो. उज्जवल सेन (हरिशचंद्र अनुसंधान संस्थान) ने शोध सुविधाओं के सुदृढ़ीकरण पर जोर दिया, जबकि प्रो. के.पी. सिंह (कुलपति, बरेली विश्वविद्यालय) ने व्यावहारिक चुनौतियों और समाधान प्रस्तुत किए। आईआईटी कानपुर के प्रो. राजा अंगमुथु और सीएसआईआर-सीडीआरआई की निदेशक डॉ. राधा रंगराजन ने भी फंड वितरण में पारदर्शिता और समयबद्धता की आवश्यकता बताई।
दूसरे तकनीकी सत्र में “अनुसंधान एवं विकास हेतु विनियामक ढांचा और प्रशासनिक प्रक्रियाएं” विषय पर विशेषज्ञों ने चर्चा की। श्री आदर्श खरे (RDSO), प्रो. महेश जी. ठक्कर (बीरबल साहनी संस्थान), डॉ. हरिशंकर जोशी (ICMR गोरखपुर), प्रो. जे.पी. सैनी (मदन मोहन मालवीय तकनीकी विश्वविद्यालय) और डॉ. सौम्या पाठक (सीएसआईआर) ने अपने अनुभव साझा किए और अनुसंधान के लिए सुगम नीतियों की वकालत की।
अंतिम सत्र में हुआ प्रश्नोत्तर:
सभी प्रतिभागियों ने शोध में आ रही बाधाओं और उनके समाधान पर अपने विचार साझा किए। मुख्य मुद्दों में समय पर फंडिंग, रिसर्च फैकल्टी की कमी और शोध अधोसंरचना की मजबूती शामिल रही। विशेषज्ञों ने रिसर्च को लोकप्रिय और स्थायी बनाए रखने के लिए सहयोगात्मक ढांचे की आवश्यकता पर बल दिया।
महत्वपूर्ण उपस्थिति:
इस बैठक में डॉ. वी.के. सारस्वत (नीति आयोग सदस्य), डॉ. सुधीर महादेव बोबडे (राज्यपाल के अपर मुख्य सचिव), प्रो. मनीष जोशी (यूजीसी सचिव), प्रो. विवेक कुमार सिंह (नीति आयोग), विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपति, शोध संस्थानों के निदेशक, सलाहकारगण और वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे।
राज्यपाल ने अंत में सभी विशेषज्ञों और प्रतिभागियों से अपने अनुभवों और विचारों को साझा करते रहने का आग्रह करते हुए कहा कि इससे भारत का शैक्षिक और शोध परिदृश्य और अधिक सशक्त बनेगा।